सावन के अंतिम सोमवार को हजारों कांवड़ियां करेंगे घिवहा स्थित बौरहवा बाबा का जलाभिषेक

ब्यूरो चीफअनिल जायसवाल की स्पेशल रिपोर्ट
सिसवा बाजार
सिसवा-घुघली मुख्य मार्ग पर स्थित घिवहा उर्फ हरपुर पकड़ी गांव में बौरहवा बाबा शिव मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। सेवा भाव समर्पण के भाव का परिचायक रहा सिसवा बाजार में वर्षों से चली आ रही परंपरा का आज भी निर्वहन करते नहीं थकता। प्रत्येक वर्ष सावन महीने के अंतिम सोमवार को सिसवा बाजार पूरी तरह से भगवामय हो जाता है। सिसवा सहित आसपास के क्षेत्र के लोग एक दिन पहले शनिवार को अलग-अलग साधनों से बिहार नेपाल सीमा के त्रिवेणी धाम पहुंचते हैं और वहां से जल भरकर रविवार को चंदा गूलभार, बसूली माता मंदिर,जहदा, कटहरी होते हुए सिसवा बाजार पहुंचते हैं, और रात्रि विश्राम कर सुबह सोमवार को क्षेत्र के घिवहा उर्फ हरपुर पकड़ी गांव में स्थित प्राचीन बौरहवा बाबा शिव मंदिर में जलाभिषेक करते हैं। त्रिवेणी धाम से जल भरकर पैदल नगर में आए हजारों कांवरियों का जत्था सिसवा बाजार सहित आसपास के क्षेत्र में विश्राम करते हैं। समाजसेवियों द्वारा कांवरियों के लिए फल, जलपान, पानी ,पैदल चलने से पैरों में सूजन से राहत के लिए गर्म पानी, दवाइयों, विशाल भंडारा सहित भक्तिमय जागरण  इत्यादि की व्यवस्था की जाती है। जिससे जल लेकर आ रहे कावड़ियों की सेवा की जा सके। वहीं पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह से मुस्तैद रहती है।

*घिवहा स्थित बौरहवा बाबा की महिमा निराली*

इस प्राचीन शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव इसी स्थान पर बौरहवा रूप धारण किए थे, यही शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था । चार खण्डों में स्थापित इस मंदिर में धरती से प्रकट बहुरवा बाबा शिवलिंग, दूसरे खंड पर श्री विष्णु- लक्ष्मी, तीसरे खंड पर मां जगदंबा तथा 70 फीट ऊंची आकाशीय खंड पर महादेव शिव की प्रतिमा मंदिर के आकर्षण का केंद्र हैं।
   जनश्रुतियों के अनुसार वर्षों पूर्व एक घी के व्यापारी घृतवाह को संतान के लिए बौरहवा बाबा के स्वप्न दर्शन हुए। इस पर घृतवाह ने  घिवहा में जमीन से निकले शिवलिंग की खोज कर कई दिनों तक भगवान शिव की पूजा अर्चना किया। इसके उपरांत घृतवाह को भगवान शिव के दर्शन हुए साथ ही भगवान शिव ने उसे पुत्रवान होने का आशीर्वाद दिया । भगवान शिव की कृपा से व्यापारी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
   दूसरी जनश्रुति के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती काशी नगरी से हिमालय की ओर जा रहे थे रास्ते में इसी स्थान पर माता उमा के आग्रह पर भगवान शिव ने बौरहवा रूप धारण किया था। तभी से इस स्थान का नाम बौरहवा बाबा पड़ गया। यह आज भी सिद्ध स्थान के रूप में माना जाता है, यहां प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में हजारों की संख्या में कांवरिया बाबा का जलाभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से बौरहवा बाबा को बेलपत्र चढ़कर 108 बार जलाभिषेक करता है, बौरहवा बाबा उसकी मनोकामना जरुर पूरी करते हैं। एक जनश्रुति के अनुसार मंदिर परिसर में हजारों सांपों का बसेरा है लेकिन किसी को नहीं डसते है सांप । बौरहवा बाबा मंदिर से कई प्रसंग जुड़े हैं बताते हैं कि गुजरे जमाने में एक निषाद का पुत्र मंदिर के पास सर्प के बिल में लकड़ी कुरेदने लगा तभी उसे बिल से निकले सर्प ने डस लिया, उसके बाद मृत बालक का पिता बौरहवा बाबा के शिवलिंग पर अपना माथा पटक कर विलाप करने लगा, कुछ देर बाद एक साधु वेशधारी महात्मा प्रकट हुए। उन्होंने उसके पुत्र को जीवित करते हुए उपदेश दिया कि किसी को अकारण नहीं छेड़ना चाहिए। महात्मा ने कहा कि यहां आज के बाद किसी को सांप नहीं काटेंगे तब से आज तक यहां किसी को सांपों ने नहीं डंसा।
   श्रावण मास के अंतिम सोमवार को हजारों की संख्या में कांवड़ियां जलाभिषेक करने के लिए त्रिवेणी धाम नेपाल से जल भरकर पैदल हजारों कावड़ियों का जत्था अंतिम सोमवार को हरपुर पकड़ी स्थित बौरहवा बाबा व गेरमा गांव में स्थित बाबा भुवनेश्वर को जलाभिषेक करते हैं । इस दिन मंदिर की छटा देखते ही बनती है। हर हर महादेव के नारों से मंदिर परिसर गुंजायमान हो जाता है । कावड़ियों की सुरक्षा के लिए प्रशासन जहां पूरी तरह से तैनात रहती है, वहीं समाजसेवियों की टोली जगह-जगह कांवड़ियों की सेवा में लगे रहते हैं।

*सेवादारों द्वारा की जाती है कावड़ियों की सेवा*
त्रिवेणी धाम से जल भरकर पैदल आए हुए कांवड़ियों की सेवा करने के लिए सिसवा बाजार की तमाम समाज सेवी संस्थाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। श्री राम जानकी मंदिर सेवा समिति ,श्री शिव स्थान जायसवाल नगर, स्टेट चौक व अन्य समाजसेवी संस्थाएं जगह-जगह पर स्टाल लगाकर आए हुए कांवड़ियों के लिए जलपान, गर्म पानी, शुद्ध पेयजल एवं भोजन के साथ दवाइयों का प्रबंध करती हैं, जिससे कांवड़ियों की कांवड़ यात्रा सुगमता से सफल हो सके।

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