शिष्य की गुरु भक्ति की कहानी गुरु के जुबानी


 रिपोर्ट:महेश राव जिला संवाददाता कुशीनगर
कुशीनगर–बरवारतनपुर
 ठंड की कहर से खुद का बचाव करते हुए गर्म कपड़े में लिपटा हुआ मैं विद्यालय के कुछ आवश्यक कागजात को पूरा कर रहा था। अचानक पदचापों की आवाज सुनाई दी। कुछ बच्चे मेरी ओर बढ़े चले आ रहे थे। उनकी ओर देखने पर मैने पाया कि मेरे ही विद्यालय का छात्र मोनू अपने दो साथियों के साथ मेरी ओर बढ़ा चला आ रहा था। मोनू अपने साथियों के साथ मेरा चरण स्पर्श कर मंद–मंद मुस्कान बिखेर रहा था। मैं उन सभी को आशीर्वाद देकर कुशल–क्षेम पूछते हुए शीतलहर में बंद विद्यालय में आने का कारण पूछा। मोनू उत्तर में मौन रहते हुए अपनी जेब में हाथ डाला। अगले क्षण उसके हाथ में रुपयों के कुछ कड़े नोट थे। मैने उत्सुकता बस मोनू से फिर पूछ लिया कि कड़ाके की ठंड है। इस ठंड में तुझे आने की क्या आवश्यकता थी ?   मोनू ने जो उत्तर दिया उसे सुनकर शिष्य के प्रति प्रेमभाव से मेरी आंखें भर आईं। दिल मुझे शाबासी दे रहा था कि तेरी दी गई शिक्षा फलीभूत हो रही है।मोनू ने अपने उत्तर में कहा कि " सर , जाड़े के कारण विद्यालय काफी दिन से बंद है। मैने अपने माता– पिताजी से कहा कि विद्यालय बंद होने के नाते सर जी को आर्थिक रूप से दिक्कत हो रही होगी। मेरे इतना कहते ही मम्मी पापा ने मुझे ये रुपए आपके लिए दिया है , तो मैं सोचा हूं कि इन्हें आप तक पहुंचा दूं।"गुरु के प्रति प्रेम भाव से सनी हुई छोटे बच्चे की बात सुनकर हृदय गदगद हो रहा था। मुझे अपनी शिक्षा को साकार होते देखकर परम संतुष्टि मिल रही थी। आजकल लगभग एक पखवाड़े से सभी विद्यालय बंद हैं। निजी विद्यालयों के बंद होने से उनके समक्ष आर्थिक संकट जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। यदि छोटे मोनू और उसके माता–पिता जैसे सभी विद्यालयों के बच्चे और अभिभावक हो जाएं तो निजी विद्यालय संचालकों और गुरुजनों  को कभी भी किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं होगी।

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